मोदी-मस्क की बड़ी मुलाकात! क्या भारत में सैटेलाइट इंटरनेट को मिलेगी हरी झंडी? Satellite Internet

Satellite Internet: यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एलन मस्क की मुलाकात को लेकर एक बड़ी चर्चा हो रही है। उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में सैटेलाइट इंटरनेट सेवा को लेकर चर्चा होगी। एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक भारत में अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सेवा शुरू करना चाहती है, लेकिन इसे अभी तक सरकार की मंजूरी नहीं मिली है। कंपनी ने इसके लिए आवेदन कर रखा है, लेकिन सरकार ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है।

स्टारलिंक सेवा और विवाद

स्टारलिंक ने कुछ समय पहले भारत में अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सेवा के लिए प्री-बुकिंग शुरू की थी। इसके तहत भारतीय ग्राहकों से करीब 7,000 रुपये लिए गए थे। लेकिन सरकार की अनुमति न होने के कारण यह सेवा शुरू नहीं हो सकी। नियमों के अनुसार, किसी भी विदेशी कंपनी को भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवा देने के लिए सरकारी मंजूरी लेनी होती है। इस वजह से स्टारलिंक को भारत में संचालन की अनुमति नहीं मिली।

मंजूरी मिलने में देरी क्यों हो रही है?

स्टारलिंक ने काफी पहले सरकारी अनुमति के लिए आवेदन किया था, लेकिन अब तक इसे हरी झंडी नहीं मिली है। ऐसा माना जा रहा है कि सुरक्षा चिंताओं के चलते सरकार इस पर विचार कर रही है। सरकार नहीं चाहती कि इस सेवा का उपयोग किसी गलत उद्देश्य, जैसे कि आतंकवादी गतिविधियों, के लिए किया जाए।

कुछ समय पहले नॉर्थ ईस्ट के इलाकों में स्टारलिंक के उपकरणों की संदिग्ध गतिविधि देखी गई थी, जिसके बाद इस पर और ज्यादा सतर्कता बढ़ा दी गई।

एलन मस्क पहले भारत दौरे पर आने वाले थे, लेकिन उन्होंने अपना दौरा स्थगित कर दिया। अब प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान मस्क से उनकी मुलाकात होगी, जिससे उम्मीद की जा रही है कि स्टारलिंक को जल्द ही भारत में मंजूरी मिल सकती है।

सैटेलाइट इंटरनेट (Satellite Internet) क्या है?

सैटेलाइट इंटरनेट एक ऐसी तकनीक है, जिसमें उपग्रहों की मदद से इंटरनेट सेवा दी जाती है। यह उन इलाकों के लिए बेहद उपयोगी होता है, जहां मोबाइल टावर या ब्रॉडबैंड इंटरनेट की सुविधा नहीं होती। स्टारलिंक का सिस्टम लोअर-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स पर आधारित है, जो पारंपरिक इंटरनेट सेवाओं की तुलना में तेज और अधिक विश्वसनीय हो सकता है।

सैटेलाइट इंटरनेट कैसे काम करता है?

स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा के लिए कुछ हार्डवेयर की जरूरत होती है। इसमें एक डिश एंटीना, रिसीवर और वाई-फाई राउटर शामिल होते हैं। यह डिश एंटीना उपग्रहों से सिग्नल प्राप्त करता है और फिर उसे इंटरनेट सेवा में बदल देता है। इसके बाद यह इंटरनेट सिग्नल वाई-फाई के माध्यम से मोबाइल, लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस तक पहुंचाया जाता है।

अन्य देशों में स्टारलिंक सेवा

भारत से पहले भूटान में स्टारलिंक सेवा शुरू हो चुकी है। दिसंबर 2025 में भूटान में यह सेवा लॉन्च की गई थी। वहां इसकी मासिक कीमत लगभग 3,000 रुपये रखी गई है। खुद एलन मस्क ने इस बारे में जानकारी दी थी।

अब सभी की नजरें प्रधानमंत्री मोदी और एलन मस्क की मुलाकात पर टिकी हैं। अगर इस बार स्टारलिंक को भारत में काम करने की अनुमति मिल जाती है, तो यह देश के दूर-दराज के इलाकों के लिए इंटरनेट सेवा का एक नया विकल्प बन सकता है।

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